गुरु अभेद का रहस्य बताकर भेद में अभेद का दर्शन करने की कला बताते हैं।
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गुरु अभेद का रहस्य बताकर भेद में अभेद का दर्शन करने की कला बताते हैं।
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गुरु अभेद का रहस्य बताकर भेद में अभेद का दर्शन करने की कला बताते हैं।
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अद्वैत, भेद में अभेद का यह क्रम ही आकर्षण और अपसारण का मूल है और इसकी
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अभेद में भेद के ज्ञान की शर्त है तर्क, भेद में अभेद की सृष्टि का भाव है काव्य।
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अभेद में भेद के ज्ञान की शर्त है तर्क, भेद में अभेद की सृष्टि का भाव है काव्य।
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परंतु विकल्प अर्थात् अन्य में अन्य का अध्यास भेद में अभेद और अभेद में भेद का प्रदर्शन कर देता है।
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वस्तुतः दाम्पत्य प्रणय में उपलब्ध तन्मयता अथवा तल्लीनता के चरम उत्कर्ष की तथा भेद में अभेद की कल्पना के चूड़ान्त निदर्शन की अभिव्यक्ति ही भक्ति के क्षेत्र में माधुर्य भाव की सृष्टि करती है।